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jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
अहमद राही
न मैं मरा हूँ न तुम मरी हो मिले थे जब पहली बार कितने किए थे वादे खाई कितनी थी हम ने क़स्में नहीं जिएँगे जो मिल न पाए मगर न ज़ेहनों में थीं हमारे वो मुर्दा रस्में जो ज़िंदा रखती हैं क़ैद कर के रिवायतों के अंधे पथरीले महबसों में