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ज़िना-बिल-जब्र | शाही शायरी
zina-bil-jabr

नज़्म

ज़िना-बिल-जब्र

कृष्ण मोहन

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कनफ़्युशेश ने कहा था
हो न छुटकारा ज़िना-बिल-जब्र से तो

हार मानो
लेट जाओ

लुत्फ़ उठाओ और उसे मक़्सूम जानो
और गाँधी ने कहा है

ऐसी मुश्किल पेश आ जाए तो फ़ौरन
काट लो अपनी ज़बाँ को

और नफ़्स को रोक लो हत्ता की दम जाए निकल और हो रिहाई
किस को समझें किस की मानें