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ज़वाल | शाही शायरी
zawal

नज़्म

ज़वाल

ग़ज़नफ़र

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कल तलक जो धरती पर
सर-बुलंद परचम था

आफ़्ताब की सूरत
रंग जिस के चेहरे का

दूर तक चमकता था
आज उस से लिपटी हैं

टिड्डियाँ हवाओं की
सुर्ख़ियों के शोलों को

ले रही हैं नर्ग़े में
बदलियाँ फ़ज़ाओं की

'मार्क्स'-जी के पुतले पर
बैठा काला कव्वा एक

बीट करने वाला है
पास ही में नारा एक

इंक़लाब ज़िंदाबाद
गूँजता है रह रह कर