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ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है | शाही शायरी
zauq-e-takallum par urdu ne rah anokhi kholi hai

नज़्म

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

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ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है
रंग की गहराई नापी है फूल की ख़ुशबू तोली है

ये नाज़ुक जज़्बात के अलबेले इज़हार की बोली है
उर्दू प्यार की बोली है

गरमाए तहज़ीब की महफ़िल चमकाया अफ़्साने को
रंग बिखेरा आँचल आँचल रूप का मान बढ़ाने को

शब्दों के प्याले में इस ने दिल की लाली घोली है
उर्दू प्यार की बोली है

'मीर' ने दिल की धड़कन दी 'इक़बाल' ने फ़िक्र का नूर दिया
'ग़ालिब' ने आग़ोश को इस की हुस्न-ए-क़रीब-ओ-दूर दिया

जिस पे ख़ज़ीनों को रश्क आए उर्दू की वो झोली है
उर्दू प्यार की बोली है

कृष्ण के अफ़्सानों का जादू दिलों का सौदा करता है
'जिगर' का नग़्मा आँखों ही आँखों में इशारा करता है

मिलों से खलियानों तक रक़्स में दीवानों की टोली है
उर्दू प्यार की बोली है

गीत 'फ़िराक़' के झिलमिल झिलमिल करते हैं मशअ'ल की तरह
हुरमत की लय साया-फ़गन है सावन के बादल की तरह

किस लैला का महमिल है ये किस गोरी की डोली है
उर्दू प्यार की बोली है