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ज़रूरत क्या है | शाही शायरी
zarurat kya hai

नज़्म

ज़रूरत क्या है

शाहीन मुफ़्ती

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इस क़दर हम से गुरेज़ाँ क्यूँ हो
कुछ नहीं हम हैं फ़क़त अक्स-ए-ख़याल

एक तस्वीर का धुँदला सा निशाँ
हर्फ़-ओ-मा'नी के पुर-असरार तसलसुल में कहीं

अन-कही बात का एहसास-ए-ज़ियाँ
अजनबी शहर में चलते चलते रास्ता हाथ पकड़ ले तो रुको

जिस तरह तेज़ हवा आ के दरीचे पे कभी
दस्तकें देती है चुप चाप पलट जाती है

और गुज़रगाह-ए-समाअ'त में फ़क़त गूँजते हैं
उस के क़दमों के निशाँ

जो यक़ीं हैं न गुमाँ
किसी इक लम्हा-ए-गुज़राँ की हक़ीक़त क्या है

कार-ए-उल्फ़त भी अगर कार-ए-अज़िय्यत है तो फिर
आख़िर इस कार-ए-अज़िय्यत की ज़रूरत क्या है