EN اردو
ज़ंजीर की चीख़ | शाही शायरी
zanjir ki chiKH

नज़्म

ज़ंजीर की चीख़

शाज़ तमकनत

;

समुंदर तुझे छोड़ कर जा रहा हूँ
तू ये मत समझना

कि मैं तेरी मौजों की ज़ंजीर की चीख़ से बे-ख़बर हूँ
यही मैं ने सोचा है अपनी ज़मीं को

उफ़ुक़ से परे यूँ बिछा दूँ
हद-ए-ईन-ओ-आँ तक उठा दूँ

वो तू हो कि मैं
अपनी वुसअत में ला-इंतिहा हैं

मगर हम किनारों के मारे हुए हैं