EN اردو
ज़मीं की रात | शाही शायरी
zamin ki raat

नज़्म

ज़मीं की रात

आसिफ़ रज़ा

;

ज़मीं की रात की है हुक्मरानी
उसी का एलची सूरज है

आओ!
बुझी जो रौशनी देती हैं वो शमएँ जलाओ

उसी के ये ख़िज़ाँ-दीदा चमन हैं
दमकते आँसुओं के बीच बो कर

ज़मीन-ए-ख़्वाब से अपना कोई गुलशन उगाओ
उसी के हैं ये चश्मे तल्ख़ सारे

अज़ल की तिश्नगी को साथ ले कर
सर-ए-सहरा खड़े हो कर सराबों को बुलाओ