ज़बाँ पर ज़ाइक़ा दो पानियों का है
समुंदर दरमियाँ होता तो इस से पूछते
किस सम्त जाएगा मुसाफ़िर कल
ख़ुनुक पानी के बजरे पर नमक की गर्म लहरों में
अकेला जाने वाला जिस तरफ़ भी जाएगा तन्हा नहीं होगा
मोहब्बत पानियों पर खेलती होगी
सो ये जल-मकड़ियों की जाल-साज़ी थी
कि साहिल से उलझ कर लोग लहरों में उतरते
और उन को ख़ौफ़ होता आँसुओं के पानियों में ख़ुश्क होने का
मैं इन को पानियों की नज़्र करता हूँ
सो ऐ आधे बदन की मेहरबाँ मछली
तुम अपने आँसुओं को ख़ुश्क मत करना
मोहब्बत पानियों पर खेलती होगी
और उस का ज़ाइक़ा खुल जाएगा
जिस वक़्त जाएगा मुसाफ़िर कल
ख़ुनुक पानी के बजरे पर नमक की गर्म लहरों में
नज़्म
ज़बाँ पर ज़ाइक़ा दो पानियों का है
मोहम्मद अनवर ख़ालिद