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ज़ात के इस्म का मो'जिज़ा | शाही शायरी
zat ke ism ka moajiza

नज़्म

ज़ात के इस्म का मो'जिज़ा

मुमताज़ कँवल

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जब से तुझ को देखा है
ख़्वाब के वसीले से

नींद के जज़ीरों में
हाथ की लकीरों में

जब से तुझ को चाहा है
रात की इबादत में

सुब्ह की दुआओं में
दूरियों की छाँव में

तब से रूह के अंदर
सब्ज़ मौसमों जैसी

ख़्वाहिशें हुमकती हैं
बारिशें बरसती हैं

बिजलियाँ चमकती हैं
घंटियाँ सी बजती हैं