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ये किस दयार-ए-अदम में... | शाही शायरी
ye kis dayar-e-adam mein

नज़्म

ये किस दयार-ए-अदम में...

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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नहीं है यूँ तो नहीं है कि अब नहीं पैदा
कसी के हुस्न में शमशीर-ए-आफ़्ताब का हुस्न

निगाह जिस से मिलाओ तो आँख दुखने लगे
किसी अदा में अदा-ए-ख़िराम-ए-बाद-ए-सबा

जिसे ख़याल में लाओ तो दिल सुलगने लगे
नहीं है यूँ तो नहीं है कि अब नहीं बाक़ी

जहाँ में बज़्म-गह-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का मेला
बिना-ए-लुत्फ़-ओ-मोहब्बत, रिवाज-ए-मेहर-ओ-वफ़ा

ये कस दयार-ए-अदम में मुक़ीम हैं हम तुम
जहाँ पे मुज़्दा-ए-दीदार-ए-हुस्न-ए-यार तो क्या

नवेद-ए-आमद-ए-रोज़-ए-जज़ा नहीं आती
ये किस ख़ुमार-कदे में नदीम हैं हम तुम

जहाँ पे शोरिश-ए-रिंदान-ए-मय-गुसार तो क्या
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा नहीं आती