ये कौन तुम से अब कहे
ये रोज़ रोज़ दर्द के जो सिलसिले हैं कम करो
ज़रा तो तुम करम करो
जो रोज़ रोज़ आओगे जो रोज़ रोज़ जाओगे
कहाँ तलक रुलाओगे कहाँ तलक सताओगे
न मुझ पे अब सितम करो जो हो सके करम करो
मिला गया है रास्ता ये मुश्किलों से जो हमें
मिलें तो इस तरह मिलें कि फूल बन के हम खिलें
ये मैं जो मैं हूँ न रहूँ
ये तुम जो तुम हो न रहो
कुछ इस तरह बहम करो
चलो ये धागे ज़ीस्त के उँगलियों पे डाल के
खेलते हैं हम ज़रा भूलते हैं सब ज़रा
कहीं अगर उलझ गए तो प्यार से सुलझ गए
मोहब्बतों के कुछ दिए जो मिल के हम जलाएँगे
कभी जले कभी बुझे कभी बुझे कभी जले
चराग़-ए-ज़िंदगी अगर
तो मिल कि हम बचाएँगे
बिछड़ गए तो फूल खिल ना पाएँगे
ये कौन तुम से अब कहे
नज़्म
ये कौन तुम से अब कहे
अलमास शबी