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ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की | शाही शायरी
ye kaisi rut aa gai junun ki

नज़्म

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

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मैं अपनी बीवी से बात करते
नपे तुले लफ़्ज़ बोलता हूँ

मैं अपने दफ़्तर में साथियों से
लिखी हुई बात बोलता हूँ

मैं अपने लख़्त-ए-जिगर से अक्सर
नज़र मिलाने से काँपता हूँ

ये कैसी फ़स्ल-ए-बहार आई
सबा से ख़ुशबू डरी हुई है

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की
नसीम गुलचीं से मिल गई है