मैं अपनी बीवी से बात करते
नपे तुले लफ़्ज़ बोलता हूँ
मैं अपने दफ़्तर में साथियों से
लिखी हुई बात बोलता हूँ
मैं अपने लख़्त-ए-जिगर से अक्सर
नज़र मिलाने से काँपता हूँ
ये कैसी फ़स्ल-ए-बहार आई
सबा से ख़ुशबू डरी हुई है
ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की
नसीम गुलचीं से मिल गई है
नज़्म
ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की
फ़ारूक़ नाज़की