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ये हाथ | शाही शायरी
ye hath

नज़्म

ये हाथ

सुलैमान अरीब

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ये हाथ कितने हसीं कितने ख़ूबसूरत हैं
ये हाथ जिन पे है इक जाल सा लकीरों का

लकीरें जिन में हैं सदियों के इर्तिक़ा के निशाँ
निशाँ अमल के अज़ाएम के इल्म-ओ-हिकमत के

सऊबतों के सलाबत के और मशक़्क़त के
वफ़ा के क़ुर्ब-ओ-रिफ़ाक़त के मेहर-ओ-उल्फ़त के

सफ़ा-ओ-सिद्क़ के इंसानियत की ख़िदमत के
करम के जूद-ओ-सख़ा के अता के बख़्शिश के

कमाल-ओ-कश्फ़ के काविश के और कोशिश के
ये हाथ कितने हसीं कितने ख़ूबसूरत हैं

मगर हमेशा मुझे इन से ख़ौफ़ आया है
ये हाथ साँप का फन हैं

ये हाथ हाथ नहीं
मुझे न देखो मिरे हाथ पर नज़र रक्खो