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यक़ीन की ग़ैर-फ़ानी साअत | शाही शायरी
yaqin ki ghair-fani saat

नज़्म

यक़ीन की ग़ैर-फ़ानी साअत

मंसूर आफ़ाक़

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शाम के आधे बदन पर थे शफ़क़ के कुछ ग्राफ़
दिन चुराने पर तुला था रात का तीरा लिहाफ़

और आँगन में मिरा नन्हा सा साहिब
भागता फिरता था जाने क्या पकड़ने के लिए

अपनी मुट्ठी खोल कर फिर बंद कर लेता था वो
मैं ने पूछा ''क्या पकड़ते फिर रहे हो सेहन में''

बोला किरनों को पकड़ता हूँ
''अभी कुछ देर में सूरज मिरा

सो जाएगा
बिस्तर में जा कर रात के...''