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यकुम जनवरी | शाही शायरी
yakum january

नज़्म

यकुम जनवरी

मोहम्मद अल्वी

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फिर इक
सर्द ठिठुरा हुआ दिन

दबे पाँव चलता हुआ
बॉलकनी से

कमरे में आया
मुझे अपने बिस्तर में

दुबका हुआ देख कर
मुस्कुराया

और आराम-कुर्सी पे बैठा
घड़ी गोद में रख के

काँटा घुमाया
थके पाँव चलता हुआ

बॉलकनी को लौटा
तो चारों तरफ़ से

अँधेरों ने बढ़ के
उसे फाड़ खाया