फिर इक
सर्द ठिठुरा हुआ दिन
दबे पाँव चलता हुआ
बॉलकनी से
कमरे में आया
मुझे अपने बिस्तर में
दुबका हुआ देख कर
मुस्कुराया
और आराम-कुर्सी पे बैठा
घड़ी गोद में रख के
काँटा घुमाया
थके पाँव चलता हुआ
बॉलकनी को लौटा
तो चारों तरफ़ से
अँधेरों ने बढ़ के
उसे फाड़ खाया
नज़्म
यकुम जनवरी
मोहम्मद अल्वी