खिड़की के पर्दे सरका कर
कमरे में आ जाती हैं
आपस में चोहलें करती हैं
मेरी हँसी उड़ाती हैं
मेज़ पे इक तस्वीर है उस को
देख के शोर मचाती हैं
मैं घबरा के भाग उठता हूँ
वो मिल कर चिल्लाती हैं
कमरे से उन की आवाज़ें
दूर दूर तक आती हैं
दूर दूर तक आती हैं
और पत्थर बरसाती हैं
नज़्म
यादें
मोहम्मद अल्वी