EN اردو
याद | शाही शायरी
yaad

नज़्म

याद

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

;

अब भी दरवाज़ा रोज़ खुलता है
रास्ता मेरा तक रहा है कोई

मेरे घर के उदास मंज़र पर
कोई शय अब भी मुस्कुराती है

मेरी माँ के सफ़ेद आँचल की
ठंडी ठंडी हवाएँ रोती हैं

फ़ासला और कितनी तन्हाई
आज कटती नहीं हैं ये रातें

आसमाँ मुझ पे तंज़ करता है
चाँद तारों में होती हैं बातें

ऐ वतन तेरे मुर्ग़-ज़ारों में
मेरे बचपन के ख़्वाब रक़्साँ हैं

मुझ से छुट कर भी वादियाँ तेरी
क्या उसी तरह से ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं