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वर्किंग लेडी | शाही शायरी
working lady

नज़्म

वर्किंग लेडी

अलमास शबी

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मैं जब भी घर पे आती हूँ
बहुत सी चीज़ें लाती हूँ

और उन चीज़ों में अक्सर
ख़ुद को रख कर भूल जाती हूँ

पता उस वक़्त चलता है
कि जब तकिए पे रखने को

मुझे सर ही नहीं मिलता
मयस्सर ख़्वाब कैसे हों

कि आँखें ही नहीं होतीं
थकन से चूर हाथों की

मैं जब जब सिसकियाँ सुनती हूँ
अपनी किर्चियाँ चुनती हूँ

पहलू में कहीं दिल भी नहीं मिलता
मुझे बस पाँव मिलते हैं जो पाँव पाँव चलते

मुझे ले जाते हैं इक ऐसे कमरे में
जहाँ पर कोई मेरा जिस्म ओढ़े सो रहा है

ये किस ने सूइयाँ सी रूह में मेरी चुभो दी हैं
मैं ख़ुद को तोड़ देती हूँ वहीं पर छोड़ देती हूँ

सो बस चुप चाप घर की सीढ़ियों पर बैठ जाती हूँ
हवाएँ बैन करतीं जब बराबर से गुज़रती हैं

पकड़ कर हाथ उन का पास ही अपने बिठाती हूँ
नए कुछ दीप रौशन कर के ख़ुद भी मुस्कुराती हूँ

ज़रा सी एक औरत हूँ
दियों की लौ में लेकिन जगमगाती हूँ