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वुसअ'तें | शाही शायरी
wusaten

नज़्म

वुसअ'तें

अबरारूल हसन

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बादल के पर्दों से
तहदार कुहरों में डूबा हुआ

नूर लिपटा हुआ
सुब्ह की अव्वलीं दूधिया छाँव में इक झलक

आसमानों की वुसअ'त की
रिम-झिम टपकती हुई

झील की पुर-सुकूँ सत्ह पर तैरती
यूँ लगा जैसे मेरी पहुँच में यहीं आ गई

सत्ह-ए-जाँ से उठी ये दुआ
उस हसीं लम्हा-ए-सहर-आगीं मैं ख़ुशियों से भर दे

मिरे दिल की गहराइयों को
तो आवाज़ आई की दामन बढ़ा

और जब दिल को वा कर दिया मैं ने
तब अपनी कम-माइगी पे बहुत ग़म हुआ