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वो पल | शाही शायरी
wo pal

नज़्म

वो पल

सलमान अंसारी

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अगर वो पल मुझे इक बार मिल जाए तो मैं पूछूँ
कि ये सौदा मिरे सर में समाया किस लिए तू ने

ये दर्द-ए-ला-दवा दिल में जगाया किस लिए तू ने
ख़िरद इदराक अक़्ल-ओ-फ़हम सब बेगार हों जैसे

फ़रासत दूर-बीनी आगही बेकार हों जैसे
हवाले इस्तिआ'रे मशवरे दुश्वार हों जैसे

दलाएल फ़लसफ़े मंतिक़ ज़ेहन पर बार हों जैसे
बसीरत होशियारी इल्म सब ख़ामोश तस्वीरें

न कोई मशवरा अच्छा न दानिश-मंद तदबीरें
मुसलसल बे-कली दीवानगी है ख़ुद-फ़रामोशी

फ़क़त इक बे-ख़ुदी आठों पहर पुर-कैफ़ मद-होशी
नज़र हर शक्ल में ढूँडे उसी दिलदार की सूरत

हर इक आवाज़ जैसे साहब-ए-आवाज़ की मूरत
समाअ'त पर नज़र पर सोच पर आसेब छाया है

हर आहट पर तमन्ना पूछती है कौन आया है