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वो | शाही शायरी
wo

नज़्म

वो

कुमार पाशी

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सारा घर जब सो जाता है
वो घर में दाख़िल होता है

सोते बच्चों के पैरों के
प्यार भरे बोसे लेता है

बीवी के नाज़ुक होंटों को
अपने गालों से छूता है

फिर अपने बिस्तर पर जा कर
सोने की कोशिश करता है

जाने कब झपकी आती है
जाने कब वो सो जाता है

देख के कोई ख़्वाब भयानक
सोते सोते चौंक उठता है

रात रात भर तारीकी में
जाने क्या सोचा करता