मैं तुम से छूट रहा हूँ मिरे प्यारो
मगर मिरा रिश्ता पुख़्ता हो रहा है इस ज़मीं से
जिस की गोद में समाने के लिए
मैं ने पूरी ज़िंदगी रीहरसल की है
कभी कुछ खो कर कभी कुछ पा कर
कभी हँस कर कभी रो कर
पहले दिन से मुझे अपनी मंज़िल का पता था
इसी लिए मैं कभी ज़ोर से नहीं चला
और जिन्हें ज़ोर से चलते देखा
तरस खाया उन की हालत पर
इस लिए कि वो जानते ही न थे
कि वो क्या कर रहे हैं
नज़्म
वह जानते ही नहीं
वसीम बरेलवी