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वो हँस रहे है | शाही शायरी
wo hans rahe hai

नज़्म

वो हँस रहे है

माधव अवाना

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मैं ने कहा ये मुल्क एक है
तो सब के लिए एक सा हो क़ानून

तो उन्होंने कहा कि
मैं फिरका-परस्त की तरह बोलता हूँ

मैं ने कहा कि मंदिर मस्जिद से ज़ियादा ज़रूरी है
ता'लीम हर इंसान को और हर पेट को रोटी

तो उन्होंने कहा कि
मैं नास्तिक सा ईश्वर को ज़रूरत में तोलता हूँ

मैं ने कहा कि तुम हम ने चुने हो
तो हमारा विकास करो

न सिर्फ़ अपनी तिजोरियाँ भरो
तो उन्होंने कहा कि

मैं बे-वज्ह राज़ खोलता हूँ
मैं ने कहा सारा मुल्क एक है

बस कुछ दिन में बदल देंगे
मिल कर हम सारा निज़ाम

वो कुछ नहीं बोले अब
बस हँसते रहे

मेरी बात और मेरे ख़यालात पर
अब वो सब ज़ोर से हँस रहे है

और मेरे पाँव जैसे धरती में धँस रहे हैं
मैं जानता हूँ कि वो सारे मुल्क पर हँस रहे हैं