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वो: एक | शाही शायरी
wo: ek

नज़्म

वो: एक

बिमल कृष्ण अश्क

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मैं जब उस से मिलने जाता हूँ अकेले रास्ते पर
अन-गिनत आँखें सितारों संग-रेज़ों पत्तियों की

मेरे क़दमों पर जमी होती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का

जब मेरे कपड़ों के गहरे ज़ख़्म बे-आवाज़ जेबें
भर नहीं सकते तमन्नाएँ सर-ए-मिज़्गान-ए-ग़ुर्बत

मेरे दिल में फूट कर रोती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का

गो तसव्वुर के भयानक जंगलों में दिन-दहाड़े
अन-गिनत ग़म की चुड़ैलें ज़हर की घमसान खेती

दामन-ए-एहसास पर बोती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का