वो बात गई
अब रात
भरी बरसात
बरसती झड़ी की टप-टप
राग नहीं
जो और लिपट कर सुनें
मुअम्मे भेद
लबों के फूल
मचल के खिलें
लहकती आग पे
ठंडी बर्फ़
नशीले बर्फ़
पहरों कटें
अब चाँद की छम-छम लहर
चमकते शौक़
उमडते सैल का नशा नहीं
कि जिस की खोज में
सूखी रेत पे
मीलों
रात गए तक चलें
अब ख़ौफ़
परेशाँ ज़ुल्फ़
दर-ओ-दीवार पे
लर्ज़ां साए
में जैसे रेंग रहा है
उम्र गुज़र गई जानाँ
नज़्म
वो बात
अबरारूल हसन