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वो बात | शाही शायरी
wo baat

नज़्म

वो बात

अबरारूल हसन

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वो बात गई
अब रात

भरी बरसात
बरसती झड़ी की टप-टप

राग नहीं
जो और लिपट कर सुनें

मुअम्मे भेद
लबों के फूल

मचल के खिलें
लहकती आग पे

ठंडी बर्फ़
नशीले बर्फ़

पहरों कटें
अब चाँद की छम-छम लहर

चमकते शौक़
उमडते सैल का नशा नहीं

कि जिस की खोज में
सूखी रेत पे

मीलों
रात गए तक चलें

अब ख़ौफ़
परेशाँ ज़ुल्फ़

दर-ओ-दीवार पे
लर्ज़ां साए

में जैसे रेंग रहा है
उम्र गुज़र गई जानाँ