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वो और मैं | शाही शायरी
wo aur main

नज़्म

वो और मैं

ख़ान मोहम्मद ख़लील

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जब ज़मीं के प्यासे होंट
बूँद बूँद को तरसे

उस की कोख ने जब भी
सब्ज़ बच्चे जनने की आरज़ू में लब खोले

तब शफ़ीक़ बादल ने
अपनी जाँ के अमृत से

इस ज़मीं के सीने में
क़तरा क़तरा रस घोला

बे-बदन दराड़ों से
ज़िंदगी उगा डाली

हाँ ये सब हुआ लेकिन
कोई आ के बादल से

सिर्फ़ इस क़दर पूछे
तेरी प्यास का दोज़ख़

सर्द है कि जलता है