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वो | शाही शायरी
wo

नज़्म

वो

अतीक़ुल्लाह

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उस में कितना घरेलू-पन है उस की साँसों में नूर है और छातियाँ
दूध से भरी हैं उस की रौशन सियाह आँखों के पालने में दूसरा

मर्द सो रहा है, मैं जिस की साँसों के शोर से बार बार उठता
हूँ देखता हूँ तो मेरे नज़दीक सिर्फ़ वो है, सिवाए

उस के कोई नहीं है, वो मेरे घर में है और किस दर्जा अजनबी
है, अभी उसे उठ के दूर जाना है जिस्म धोना है, अपने

बच्चों को देखना है सफ़ाई करना है झूटे बर्तन भी माँझने हैं
अपने आक़ा के साथ फिर सारी रात मरना है