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विरासत | शाही शायरी
wirasat

नज़्म

विरासत

नौफ़िल आर्या

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तुम दे गए हो
बहुत सारी रिवायतें

रूसूमात
कि शायद

लाज़िम था तुम को
मेरे मुहर्रिकात

नज़र-बंद कर देना
मगर

महसूर रूहों का
सोज़-ए-मातम

शिगाफ़ कर देना चाहता है
ज़ंग-आलूद

बक्तर
कि दम घोंटतीं

बदकार हवाएँ
रिहा कर दें

सहाइफ़!!
और

नुमायाँ हो
नूर-ए-क़दीम

कि जद्द मेरे
अंधेरा बहुत गहरा है

दुआ करना