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वक़्त से पहले | शाही शायरी
waqt se pahle

नज़्म

वक़्त से पहले

निदा फ़ाज़ली

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यूँ तो हर रिश्ते का अंजाम यही होता है
फूल खिलता है

महकता है
बिखर जाता है

तुम से वैसे तो नहीं कोई शिकायत
लेकिन

शाख़ हो सब्ज़
तो हस्सास फ़ज़ा होती है

हर कली ज़ख़्म की सूरत ही जुदा होती है
तुम ने

बे-कार ही मौसम को सताया वर्ना
फूल जब खिल के महक जाता है

ख़ुद-ब-ख़ुद
शाख़ से गिर जाता है