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वक़्त | शाही शायरी
waqt

नज़्म

वक़्त

परवीन फ़ना सय्यद

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अंधे वक़्त के
गहरे कुएँ में

माज़ी की हर याद छुपी है
कुछ लम्हों की किरनें

ज़र्द सुनहरी-आँचल में लिपटी हैं
कुछ पल ऐसे भी हैं

जिन के आईने में
दुख के अनमिट-अक्स

उभर कर
आँखों के गिर्दाब में रक़्साँ

लौह-ए-दिल पर
नक़्श हुए हैं

धूप और छाँव के इस खेल को
हाल का हर पल देख रहा है

दुख के भारी बोझल पत्थर
सुख की नर्म सुनहरी किरनों को

मीज़ान में रख कर
तौल रहा है

मुस्तक़बिल
इक धुँद की चादर में लिपटे

दुरवेश की सूरत
वक़्त के इस तारीक कुएँ से

झाँकते माज़ी
हाल के इक इक नक़्श का परतव

देख रहा है
सोच रहा है