तुम्हारे और मेरे फ़ैसलों के दरमियाँ
ये वक़्त है जिस ने
तनाबें खींच कर अपनी
हमारी बेबसी दो चंद कर दी है
तुम्हारे पास कम है
और मेरे पास भी उतना नहीं
फिर उस पे इतनी उलझनें तोहफ़े में दी हैं
ज़िंदगी ने
जिन्हें सुलझाते सुलझाते
तुम्हारे पास आते रास्ते धुँदलाने लग जाएँ
नज़्म
वक़्त
मैमूना अब्बास ख़ान