आओ आज
धूप में खड़े हो कर
दरख़्तों को दुआएँ दें
जिन के पास हमारे हिस्से की थकन है
आओ आज
ख़ुश्क दरिया में खड़े हो कर
पानी को आवाज़ दें
आओ आज
फूलों का रंग ओढ़ कर
आवारगी करें
और तकते रहें आसमान को
जहाँ हर शाम इक नई पैंटिंग सजी होती है
आओ आज
परिंदों को आसमान
और महबूबाओं को पेश करें
सुर्ख़ फ़ीते से बंधे दिल

नज़्म
वैलेंटाइन-डे
अहमद आज़ाद