मोहब्बत ख़्वाब हो जाए
हवा के साथ खो जाए
समुंदर के किनारे
ज़र्द चेहरा शाम का मंज़र
किसी की याद का नश्तर
कभी दिल में उतर जाए
किसी दुख से
कभी जब आँख भर आए
इसी ठहरी हुई साअत में
लगता है
कि जैसे
दर्द में डूबे हुए सब दिल
नमी से झिलमिलाती सारी आँखें
मेरी अपनी हैं
नज़्म
वजूद का फैलाव
मुबीन मिर्ज़ा