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वहम यक़ीन | शाही शायरी
wahm yaqin

नज़्म

वहम यक़ीन

ख़ालिद मलिक साहिल

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मेरे घर के हर कमरे में
एक ही चेहरा झाँक रहा है

दीवारों पर अक्स है उस का
दरवाज़ों पर लम्स है उस का

हर आहट में उस की आहट
हर लम्हे मौजूद है लेकिन

फिर भी तयक़्क़ुन सोच रहा है
कौन है मेरे वहम के घर में

कौन अँधेरे खोल रहा है, कौन ख़मोशी बोल रहा है
किस ने मेरे दर्द के दिल को

हाथ का मरहम बख़्श दिया है
किस ने मेरी तंहाई में

अपना चेहरा छोड़ दिया है