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इस छालिया के पेड़ के नीचे | शाही शायरी
is chhaaliya ke peD ke niche

नज़्म

इस छालिया के पेड़ के नीचे

मोहम्मद अनवर ख़ालिद

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इस छालिया के पेड़ के नीचे ख़ुदा-गवाह
मुझ पर नुज़ूल रहमत-ओ-इजलाल-ए-हक़ हुआ

और यूँ हुआ कि मुझ पे ज़मीं खोल दी गई
और आसमान सर पे मुसल्लत नहीं रहा

और ये कहा गया कि जो घर लोटिए तो फिर
हाथों में धूप ले के मुंडेरों पे डालिए

मिट्टी उगाइए कि ज़मीं शोरा-पुश्त है
और ये कि मीश-ओ-इबलक़-ओ-उश्तुर के वास्ते

दो छालिया के पेड़ मज़ारों के तीन फूल
और एक आँख जिस पे जहान-ए-अबस खुले

वैसे तो घर तक आ गई साअ'त ज़वाल की