EN اردو
उन लोगों के अंदर | शाही शायरी
un logon ke andar

नज़्म

उन लोगों के अंदर

मजीद अमजद

;

उन लोगों के अंदर जिन के अंदर में भी हूँ
मेरे बर-अक्स ऐसे भी

हैं कुछ लोग
जिन की बातों के कुछ सच्चे रूप

उन के हरबे हैं
लेकिन ये सच उन का नहीं होता

ये सच औरों से छीना हुआ होता है
अपने झूट और अपनी बदी को छपाने की ख़ातिर

वो औरों की इक इक अच्छाई को हथिया लेते हैं
और फिर उस हथियार को ले कर जब वो चलते हैं

सारी दुनिया उन से डरती है
ये भी कैसा ज़माना है

जब अच्छों की सब अच्छाइयाँ बुरों के हाथों में
हरबे हैं सच्चे लोग अगर जीवट हूँ

कौन उन के मुँह आएगा
झूट के उस तालाब के सब कछवे

अपने अपने ख़ोल में अपने अपने काले ज़मीरों में
छुप जाएँगे