जब तेरी ज़ुल्फ़ों सी चंचल रात न मानी
जब तेरे गुलनार लबों सी बात न मानी
तेरी क़ुर्बत की ख़ुश-बू सा वक़्त न ठहरा
तन्हाई के इस सहरा में क्या रक्खा है
ये भी इक दिन कट जाएगा
तेरी क़ुर्बत के मौसम में
काँटों की मानिंद कभी
ये मेरे होंटों या सीने में चुभ जाएगा
नज़्म
उम्मीद
राही मासूम रज़ा