ज़िंदगी अजब है
फिर भी अपने पास
मौत को
फटकने नहीं देती
जब कि हाथ महरूम हैं
रोज़गार से
पेट दाने से
और सर आसरे से
सख़्त-जान ज़िंदगी
हज़ार बार
मर कर भी
ज़िंदा रहती है
उम्मीद के उजालों में
ऊँची उड़ानों में
अपने आप से
झुंझती हुई
कि हक़ीक़त में
जिसे कहते हैं ज़िंदगी
हमें भी
हासिल हो गई कभी तो
बस ये जज़्बा
न कभी मरने पाए
नज़्म
उम्मीद
ख़दीजा ख़ान