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उलमा-ए-ज़िंदानी | शाही शायरी
ulma-e-zindani

नज़्म

उलमा-ए-ज़िंदानी

शिबली नोमानी

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मसाजिद की हिफ़ाज़त के लिए पुलिस की हाजत है
ख़ुदा को आप ने मश्कूर फ़रमाया इनायत है

अजब क्या है कि अब हर शाह-राह से ये सदा आए
मुझे भी कम से कम इक ग़ुस्ल-ख़ाने की ज़रूरत है

पिन्हाई जा रही हैं आलिमान-ए-दीं को ज़ंजीरें
ये ज़ेवर सय्यद-ए-सज्जाद-आली की विरासत है

यही दस बीस अगर हैं कुश्तागान-ए-ख़ंजर-अंदाज़ी
तो मुझ को सुस्ती-ए-बाज़ू-ए-क़ातिल की शिकायत है

शहीदान-ए-वफ़ा के क़तरा-ए-ख़ूँ काम आएँगे
उरूस-ए-मस्जिद-ए-ज़ेबा को अफ़्शाँ की ज़रूरत है

अजब क्या है जो नौ-ख़ेज़ों ने सब से पहले जानें दीं
कि ये बच्चे हैं इन को जल्द सो जाने की आदत है

शहीदान-ए-वफ़ा की ख़ाक से आई हैं आवाज़ें
कि शिबली बम्बई में रह के महरूम-ए-सआदत है