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उकताहट | शाही शायरी
uktahaT

नज़्म

उकताहट

क़तील शिफ़ाई

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रौशनी नहीं है दूर दूर तक
जाओ मुझ को छोड़ दो

ख़ामुशी है मय-कदे से तूर तक
बरबतों को तोड़ दो

ये उदास रात की सियाहियाँ
नींद आ के टल गई

ये मिरे नसीब की सियाहियाँ
शम्अ कब की जल गई

नींद है न चाँद है न जाम है
प्यास क्या बुझाओगे

ज़िंदगी की तेग़ बे-नियाम है
आस क्या बंधाओगे

आसमाँ बुलंद है तो क्या करूँ
हाए मेरी पस्तियाँ

काश मैं तुम्हें कभी दिखा सकूँ
कुछ उजाड़ बस्तियाँ

हसरतों का बाग़ बाग़ उजड़ गया
फूल अब खिलेंगे क्या

एक एक हम-सफ़र बिछड़ गया
दोस्त अब मिलेंगे क्या

मिशअलें नहीं तो ये चराग़ क्यूँ
राह भूल जाऊँगा

ज़िंदगी पे कोई ताज़ा दाग़ क्यूँ
चाह भूल जाऊँगा

रौशनी नहीं है दूर दूर तक
जाओ मुझ को छोड़ दो

ख़ामुशी है मय-कदे से तूर तक
बरबतों को तोड़ दो