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उजलत में पशेमानी का तज़्किरा | शाही शायरी
ujlat mein pashemani ka tazkira

नज़्म

उजलत में पशेमानी का तज़्किरा

फर्रुख यार

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हम कहीं साअत-ए-बे-बाल-ओ-परी
खोल के दम लेते हैं

रेग-ज़ारों से निकलते हैं
रवानी ले कर

और उतर जाते हैं
गदराए हुए पानी में

बस इसी पानी में है
अपनी हवस

अपने चलन का क़िस्सा
ये चलन

ख़्वाब-गह-हस्त से होता हुआ
काशाने तलक जाता है

जिस की दर्ज़ों से दुआ झाँकती है
और ख़िल्क़त है

कि ग़फ़लत-भरे पहरों में हवा माँगती है