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टूटा हुआ उफ़ुक़ | शाही शायरी
TuTa hua ufuq

नज़्म

टूटा हुआ उफ़ुक़

मंसूर आफ़ाक़

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मियाँवाली भी अपनी रुत बदलता है मगर
मिरे दिल की ज़मीनों पर

वही मौसम ख़िज़ाँ का
वही बे-शक्ल चेहरा आसमाँ का

वही बे-आब दरिया दास्ताँ का
वही बे-रूह मंज़र हैं

वही बे-रंग तस्वीरें
वही चश्मे ,वही उब्ला हुआ पानी

दरख़्तों से
मुसलसल भाप बन कर उठ रहा है

पिघलती जा रही हैं मेरी रातें
सवा नेज़े पे सूरज है

मगर शब की सियाही उड़ रही है मेरी मिट्टी में
मिरे अंदर की फ़सलें

तीरगी की धूप में मुरझा गई हैं
मुझे कोई शिकस्त-ए-ज़ात की इल्लत बता दे!