जीने के लिए मरना
ये कैसी सआदत है
मरने के लिए जीना
ये कैसी हिमाक़त है
अकेले जियो एक शमशाद-तन की तरह
और मिल कर जियो
एक बन की तरह
हम ने उम्मीद के सहारे पर
टूट कर यूँ ही ज़िंदगी की है
जिस तरह तुम से आशिक़ी की है
नज़्म
तुर्क शाएर नाज़िम-हिकमत के अफ़्कार
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़