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तुम्हारी चुप मिरा आईना है | शाही शायरी
tumhaari chup mera aaina hai

नज़्म

तुम्हारी चुप मिरा आईना है

बुशरा एजाज़

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तुम्हारी चुप मुझे हर बार
जीने की नई इक बद-गुमानी सौंप देती है

मैं लफ़्ज़ों के ख़यालों के
सुनहरी सुरमई रंगीन नुक़्तों से

कहानी का नया इक मोड़ लिखती हूँ
बिखरती ज़िंदगानी को नई तरतीब देने की

बहुत कोशिश मैं करती हूँ
मगर तुम तक रसाई का

कोई रस्ता नहीं बनता
तुम अपनी चुप के सच्चे मस्त लम्हों में

ख़ुद अपने-आप से
इक पल की दूरी पर

खड़े हो कर
मुझे जब देखते हो तो

मैं ख़ुद को देखने की आरज़ू में
मरने लगती हूँ!!