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तुम ने उसे कहाँ देखा है | शाही शायरी
tumne use kahan dekha hai

नज़्म

तुम ने उसे कहाँ देखा है

नसीर अहमद नासिर

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कभी तुम ने देखा है
ख़्वाबों से आगे का मंज़र

जहाँ चाँद तारों से रूठी हुई
रात अपने बरहना बदन पर

सियह राख मल कर
अलाव के चारों तरफ़ नाचती है!

कभी तुम ने झाँका है
पलकों के पीछे

थकी नीली आँखों के अंदर
जहाँ आसमानों की सारी उदासी

ख़ला-दर-ख़ला तैरती है
कभी तुम ने इक दिन गुज़ारा है

रस्तों के दोनों तरफ़ ईस्तादा
घने सब्ज़ पेड़ों के नीचे

जहाँ धूप अपने लिए
रास्ता ढूँढती है!

कभी तुम ने पूछा है
चलते हुए रास्ते में

किसी अजनबी से
पता उस के घर का

हवा जिस के क़दमों के मिटते निशाँ चूमती है
नगर-दर-नगर घूमती है!!