मेरी नींद इक परिंदा है 
जो गुम हो गया है 
तुम्हारी आँखों में 
तुम्हारी आँखें कहाँ हैं 
मेरा दिल 
भरा रहता है 
उस बादल की तरह 
जिसे तलाश है तुम्हारी धूप की 
तुम्हारे हुस्न का सूरज कहाँ है 
इक जंग जो मैं हूँ 
घिरा रहता हूँ अपने आप में 
और एक शहज़ादी 
जिसे बुला रहा है ये जंगल 
ऐ शहज़ादी तुम कहाँ हो
        नज़्म
तुम कहाँ हो
अहमद आज़ाद

