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तुझे भी याद तो होगा | शाही शायरी
tujhe bhi yaad to hoga

नज़्म

तुझे भी याद तो होगा

वज़ीर आग़ा

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कभी हवा
इक झोंका है जो

दीवारों को फाँद के अक्सर
हल्की सी एक चाप में ढल कर

सहन में फिरता रहता है
कभी हवा

इक सरगोशी है
जो खिड़की से लग कर पहरों

ख़ुद से बातें करती है
कभी हवा

वो मौज-ए-सबा है
जिस के पहले ही बोसे पर

नन्ही मुन्नी कलियों की
निन्दिया से बोझल

सूजी आँखें खुल जाती हैं
कभी हवा

अब कैसे बताएँ
हवा के रूप तो लाखों हैं

पर उस का वो इक रूप
तुझे भी याद तो होगा

जब सन्नाटे
पोरी पोरी टूट गिरे थे

चाप के पाँव
उखड़ गए थे

सरगोशी पर
कितनी चीख़ें झपट पड़ी थीं

और फूलों की आँखों से
शबनम की बूँदें

फ़र्श-ए-ज़मीं पर
चारों जानिब बिखर गई थीं