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तिरे जाने के ब'अद | शाही शायरी
tere jaane ke baad

नज़्म

तिरे जाने के ब'अद

नौफ़िल आर्या

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बिरहन
वक़्त के

गेसुओं का साया
पेश आता है

बे-अंजाम कहानी की तरह
जो फ़नकार का क़लम

मख़्सूस हाशिए पर
टूटने का अलमिया ठहरी

और
ज़ख़्म-ख़ुर्दा किताब

औराक़ से लिपट कर
रो पड़ती है

किरदार का लहू
तिरे जाने के ब'अद