मैं दोनों आँखें मीचे
गिरता पड़ता दौड़ रहा हूँ!
आगे क्या है
मुझ को कुछ मा'लूम नहीं
लेकिन मेरी तीसरी आँख
पीछे भागते रात और दिन
साल और सदियाँ देख रही है!
पीछे दूर बहुत पीछे
झिलमिल करती
बुझती ख़ुशियाँ देख रही है!
मैं दोनों आँखें मीचे
तीसरी आँख से रोता हूँ!!
नज़्म
तीसरी आँख
मोहम्मद अल्वी