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तीरगी | शाही शायरी
tirgi

नज़्म

तीरगी

ज़िया जालंधरी

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ये रात दिन की उदासी ये बे-हिसी ये थकन
हयात है कि तह-ए-बर्फ़ ना-दमीदा चमन

वो सब्ज़ा मेरी नज़र से मिरे जहान से दूर
मगर कहीं वो चमन वो हयात है तो सही

ये दिल में एक कसक सी मिरी ज़बान से दूर
ज़बाँ से दूर सही कोई बात है तो सही

चमन को बर्फ़ की तह में नुमू की ख़्वाहिश है
हयात को तपिश-ए-आरज़ू की ख़्वाहिश है